Vishwakarma Puja: विश्वकर्मा पूजा के दिन बन रहे 5 शुभ संयोग, जानें पूजा का मुहूर्त और विधि
आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ‘विश्वकर्मा पूजा’ मनाया जाता है। भगवान विश्वकर्मा को इस धरती का पहला वास्तुकार माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा का जन्म आश्विन माह की कन्या संक्रांति के दिन हुआ है। इसीलिए इस दिन को ‘कन्या संक्रांति’ के रूप में भी मनाया जाता है। जगत पिता ब्रह्मदेव के मानस पुत्र भगवान विश्वकर्मा की जयंती के दिन सभी लोग अपने प्रतिष्ठान, मशीनों, औजारों और निर्माण कार्य स्थल की विधि-विधान से पूजा करते हैं और भगवान विश्वकर्मा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस साल विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर कई वर्षो बाद पांच शुभ संयोग बन रहे हैं। विश्वकर्मा जयंती के दिन भगवान की श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना करने से व्यापार में उन्नति होती है और भक्त के सभी कार्य निर्विघ्न पूरे होते हैं।
विश्वकर्मा जयंती का शुभ मुहूर्त
17 सितंबर को सुबह 7 बजकर 39 मिनट से सुबह 9 बजकर 11 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगा। इसके बाद दूसरा शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 48 मिनट से दोपहर 3 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। इसके बाद शाम 4 बजकर 52 मिनट तक भी पूजा करने का बेहद शुभ मुहूर्त रहेगा। इस दिन अमृत सिद्धि, द्विपुष्कर, रवि, सर्वार्थ सिद्धि और सिद्धि का शुभ योग बन रहा है।
विश्वकर्मा जयंती के दिन अपने प्रतिष्ठान या दुकान में कामकाज में उपयोग में आने वाली सभी मषीनों की भली प्रकार से सफाई करें। इसके बाद स्वयं स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित कर धूप, दीप, ऋतुफल, पुष्प, पंचमेवा, पंचामृत और मिष्ठान से विधिवत पूजा करें। पूजा के बाद भगवान विश्वकर्मा की आरती जरूर करनी चाहिए।
आरती
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा।
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥
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